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ख़बर / संजय कुमार शांडिल्य
Kavita Kosh से
मेरे हिस्से का
काग़ज़ गूँथा
क़लम बनी
स्याही घुली।
धरती छिटकी
आसमान तना
सागर लहराया।
मेरे हिस्से का
बारूद सुलगा
लोहा पिघला
लहू गरमाया
मुझे ख़बर
नहीं हुई।