Last modified on 3 अप्रैल 2010, at 15:59

ख़लिश / हरकीरत हकीर

यूँ क़रीब से
न गुज़रा कर
अय सबा!

तेरे क़दमों की
आहट भी
खलिश दे जाती है

कभी मुहब्बत...
मेरे दर आई जो नहीं...!!