भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ामशी में जो अश्क पले / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ामशी में जो अश्क पले
क्या छुपते मुस्कान तले

दिल में धुआँ-सा उठता है
जैसे होली कोई जले

ढलता सिन, ढलता सूरज
चाँद न आया रात ढले

आशा की किरणें डूबीं
साँसों का सूरज जब भी ढले

रौशन होती हैं राहें जब
दीपों में मेरा खून जले

दुनिया क्यों बेनूर हुई
आइने को ये बात खले

पत्थर का धड़के जब दिल
ख़्वाब को जैसे ख़्वाब छले