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ख़ुशामदीद / वर्तिका नन्दा
Kavita Kosh से
पी०एम० की बेटी ने
क़िताब लिखी है
वो जो पिछली गली में रहती है
उसने खोल ली है अब सूट सिलने की दुकान
और वो जो रोज़ बस में मिलती है
उसने जे०एन०यू० में एम०फ़िल० में पा लिया है एडमीशन।
पिता हलवाई हैं और
उनकी आँखों में अब खिल आई है चमक
बेटियाँ गढ़ती ही हैं।
पथरीली पगडंडियाँ
उन्हें भटकने कहाँ देंगी!
पाँव में किसी ब्रांड का जूता होगा
तभी तो मचाएंगी हंगामा बेवज़ह।
बिना जूतों के चलने वाली ये लड़कियाँ
अपने फटे दुपट्टे कब सी लेती हैं
और कब पी लेती हैं
दर्द का ज़हर
ख़बर नहीं होती।
ये लड़कियाँ बड़ी आगे चली जाती हैं।
ये लड़कियाँ चाहे पी०एम० की हों
या पूरचन्द हलवाई की
ये खिलती ही तब हैं
जब ज़माना इन्हें कूड़ेदान के पास फेंक आता है
ये शगुन है
कि आने वाली है गुड न्यूज़।