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खिड़कियों की साजिशों से / अशोक अंजुम
Kavita Kosh से
खिड़कियों की साजिशों से कुछ हवा की ढील से
झोपड़ी जल ही न जाए देखना कन्दील से
एक छोटा ही सही पर घाव देकर मर गई
यूँ वो चिड़िया अन्त तक लड़ती रही उस चील से
तू कचहरी की तरफ चल तो दिया पर सोच ले
फाँस गर निकली तेरी निकलेगी प्यारे कील से