खिले एक डाली पर दो फूल!
आई एक बासंती बाला, पड़ती जल बूंदें अलकों से
विकसित सुमनों की सुवास पा, नयनों से ढकती पलकों से
कुछ खोल नयन फिर हाथ बढ़ा, दो सुमनों से एक तोड़ लिया
डलिया के रखे फूलों में एक और सुमन भी जोड़ लिया
मदिर चाल से चली, पवन से लहरा उठा दुकूल।
पहुंची गौरी के मंदिर में, श्रद्धा से मस्तक नत करके
माँ को फिर फूल किये अर्पित, अपने को भी विस्मृत कर के
गौरी की पूजा में आकर, वह सुमन भाग्य पर इठलाया
मुस्का कर कहने लगा अहा! कितना स्वर्णिम अवसर पाया
उस डाली पर मिलता मुझ को, प्रति पग पर एक शूल।
डाली से नीचे गिरा फूल, अगले दिन जब आंधी आई
मिट्टी पर पड़ कर सूख गया, मुख की मञ्जुलता मुरझाई
वह बाला पुनः वहां आई, नव विकसित सुमन चयन करने
पैरों के नीचे कुचल गया, तो लगा फूल आहें भरने
जिस ने जीवन दिया अंत में, मिली वही फिर धूल।
खिले एक डाली पर दो फूल!!