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खिलौना बनाकर / रामगोपाल 'रुद्र'
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खिलौना बनाकर रहे खेलते वे,
उचट जी गया, चट मुझे तोड़ डाला!
खुद उनकी निगाहों भरा था जो प्याला,
कोई उनसे पूछे कि क्यों फोड़ डाला!
किनारे की रेती से लहरों पर लाकर
ये कैसे भँवर में मुझे छोड़ डाला!
मज़ा आ गया था यहाँ, यह न भूले
किताबी सफे-सा मुझे मोड़ डाला!