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खुले नहीं रहस्य /चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
तुम सोचो मत
वे सोच रहे हैं
सृष्टि के पहले दिन से
अनवरत
तुम मत देखो
देखने से चीज़े साफ़ हो जाती हैं
इतनी कि सब भरम मिट जाते हैं
और भरम मिट जाने पर
किसी को भरमाया नहीं जा सकता
तुम केवल सुनो
सुने हुए के
शब्द- शब्द को
समेटते हुए मुठ्ठियों में
इस तरह
कि मुठ्ठियाँ खुलें भी
तो झरें नहीं शब्द
खुले नहीं रहस्य
उन आशाओं का
जिनके अंतर्गत
तुम गृहिणी सलज्ज सलोनी
और गणिका ठीट चितवन वाली
दोनों एक साथ.