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खेल चुके हम फाग समय से / हरिवंशराय बच्चन
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खेल चुके हम फाग समय से!
फैलाकर निःसीम भुजाएँ,
अंक भरीं हमने विपदाएँ,
होली ही हम रहे मनाते प्रतिदिन अपने यौवन वय से!
खेल चुके हम फाग समय से!
मन दे दाग अमिट बतलाते,
हम थे कैसा रंग बहाते
मलते थे रोली मस्तक पर क्षार उठाकर दग्ध हृदय से!
खेल चुके हम फाग समय से!
रंग छुड़ाना, चंग बजाना,
रोली मलना, होली गाना--
आज हमें यह सब लगते हैं केवल बच्चों के अभिनय से!
खेल चुके हम फाग समय से!