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खोज / मधु शर्मा

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इतने हसीन मंज़र थे

उनकी बरछियाँ चुभती रहीं

दिमाग़ उनकी झिलमिली में उलझा

मन भूला

और देह पर गिरा

सारा युद्ध


मैं एक हारी हुई योद्धा--

मैदानों में दूर तक

छितरी हैं देहें मेरी

मैं आत्माओं को खोजती हूँ

छिन्न-भिन्न ।