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गंगा-2 (रात में) / कुमार प्रशांत
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रात में नदी चढ़ी
पाट फैला -
फैलता हुआ
दोनों किनारों को जोड़ गया.
नदी मुझ तक पहुँची
मैं कहीं छूट गया!
नदी
तुमको मिला मैं ?