Last modified on 15 दिसम्बर 2011, at 09:58

गंगा स्तुति / कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज'

मायामोहिनी के बस भांवरी भरत ताहि मुक्ति दै के भवर बनाया निज अंग है।
नीचताइ नीचन सों वेग उदवेगन सों खल चितकार धुनि कलकल संग है॥
ताइ पैन न्यायो मल चन्द्रिका समान जल षीतल सरोज थलशुचि शुभगंगा है।
भूतल निवासिन केर कल्भश हरन करि देत पद अच्युत ये उछलि तरंगा हें॥