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गज़ल हो गये / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

आप इतने सफल हो गये ।
मानसर के कमल हो गये ।

था सुधाघट पिलाया गया,
किनतु निर्झर गरल हो गये ।

प्रश्न पैदा हुए बाद में-
पूर्व उत्पन्न हल हो गये ।

झुग्गियाँ कपकपाने लगीं,
आप इतने सबल हो गये ।

चाँदनी में निकल क्या गये,
प्राण मन सबल हो गये ।

आज अपने मिले स्वप्न में,
प्राण कितने विकल हो गये ।

आइना मूक-दर्शन बना,
देख कर दृग सजल हो गये ।

कल कहाँ पड़ रही आजकल,
आजकल आजकल हो गये ।

स्वर हुए कंगनों के मुखर,
भाव मेरे गजल हो गये ।