भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गठजोड़ / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
थोड़ोॅ देर बादे
बदली गेलै
चींखोॅ में
चीत्कारोॅ में
आरोॅ आँसू में
ई गठजोड़ जेॅ छेलै
मुस्कुराय वास्तें ।