गढ़वाल-यात्रा का एक यादगार चित्र / स्वप्निल श्रीवास्तव
हमारे साथ नदी थी, पहाड़ थे
झरने थे, जो बीच रास्ते में दिख जाते थे,
बर्फ़ की चट्टानें थी, बुग्याल थे,
जिन्हें देख कर हरी-भरी हो जाती थी आँखें ।
जहाँ जाना कठिन था, घोड़े हमें पीठ पर लादकर
गन्तव्य ठिकानों तक पहुँचाते थे,
वे मनुष्यों से ज्यादा मानवीय थे ।
पूर्वजों की पवित्र स्मृतियाँ थीं, जो हमसे कहती थीं —
आगे बढ़ो और उन परिन्दों को देखो
जिनकी चोंचों में घर बनाने के लिए तिनके हैं ।
हम अकेले कहाँ थे, पहाड़ों की विशाल दुनिया
हमारे साथ थी,
ज़रूरत भर के लिए साहस था, जो दुर्गम रास्तों में
काम आता था ।
चीड़ के कलात्मक पेड़ थे,
ऋषियों की याद दिलाते देवदार के सुदीर्घ वृक्ष थे,
बुराँस के चटख खिलते हुए फूल थे,
वनस्पतियों की बेचैन करनेवाली गन्ध थी।
इतना सब कुछ था हमारे पास
और हम दुनिया के सबसे ख़ुश आदमी थे ।