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गन्धित मुस्कान / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अधखिसके घूँघट ने
जगा दिए
पनघट के घट
तन्वंगी कनक-छरी बाहें
बाँध गई धरती आकाश
वृक्षों की अटपटी प्रभाती
काट गई कुहरीले पाश
पहुँच गई
छुईमुई पावनता
थाल के निकट
एक गूँज भरी छेड़खानी
तोड़ गई कलियों का मान
पान रचे होंठ से फिसल कर
फैल गई गन्धित मुस्कान
झूम उठा
अन्तर का
कालिन्दी-तट वंसी-वट