भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गर्मी की छुट्टी में / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
गरमी की छुट्टी में कितनी,
करें पढाई, कितना खेलें।
छुट्टी में तो तय था हमको,
होगी खेलों की आज़ादी।
पहले से ही सब मित्रो के,
पिटवा दी थी बीच मुनादी।
फिर भी थोड़ा पढ़ लेने की,
डांट डपट अब हम क्यों झेलें।
टिप्पू खेलें, लंगड़ी खेलें,
छिबा छिबौअल चिड़िया बल्ला,
हमें खेलने दो सारे दिन,
भूख प्यास का करो न हल्ला।
बता दिया हमनें चूहों को,
दंड पेट में अभी न पेलें।
छुट्टी में पुस्तक की बातें,
छुट्टी में पुस्तक के चर्चे।
नाम न लेना इस गर्मी में,
भूल चुके स्कूल मदरसे।
दादा लाड़ करें जी भरकर,
दादी हंसकर प्यार उड़ेलें।