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गली के दो छोर / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
एक छोर पर
किसी की शादी है
लड़कियां सज रही हैं
शहनाईयां बज रही हैं
दूसरे छोर पर
कोई मर गया है
लोग रो रहे हैं
यादें बो रहे हैं
गली के बीचों-बीच खड़ा हूं मैं
मुझे क्यों यकीन नहीं होता
ये हकीकत है
या कोई भयानक स्वप्न
मैं जो देख रहा हूं
इसे देखना कोई खेल नहीं
गली के दोनों छोरों में
कोई मेल नहीं
रचनाकाल:1996