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गळगचिया (45) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आँख रै दो बेटा। एक रो नाँव साच'र दूजै रो नाँव सपनूं। साच री लुगाई दीठ, सपनैं री लुगाई नींद। जेठाणी'र देराणी में अणबणती दीठ अताळ तो नींद पताळ। एक घराँ रवै तो दूजी पीरै। एक रो काम उघाड़णूं तो दुजी रो काम ढ़कणूं। दीठ अणूंती अचपळी तो नींद साव ही पळगोड। पण घणूं अँचूभो ई बात रो क सासू ने दोन्यूं एक सी प्यारी । बुआँ री बड़ाई करती करती को थकै नीं। कवै इसी सुपातर क पलकाँ में घाली को रड़कैनी। एक च्यानणै रै तळाब री मछली तो दूजी अन्धेरै रै समदर री सीप। ओपमा थोड़ी गुण घणा। आँख रो मोट्यार मन सुणै जद कवै-छोराँ री मा तूं तो समदरसी है।