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गळगचिया (57) / कन्हैया लाल सेठिया

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नैणाँ रै मैल में रमती सपनाँ री राजकँवरी एक दिन बगत रै घोडै़ पर असवार हू'र आँवते साच रै राजकंवर नै देख्यो, राजकँवरी बीं रै सोवणै रूप रीझगी। पलकाँ री मुटयाँ भर भर'र आँसूड़ाँ रा अणबींध्या मोती निछावर करया। देखणियाँ कयो, बापड़ै में बिखो पड़ग्यो जणाँ आँसूडा ढ़ळकावै है।

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