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गळी बां रो घर है / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
गळी में सोवै
गळी में जागै
गळी में पोवै
गळी में खावै
गळी में बोतलां-मेणियां
चुग'र करै बै
जीविका रो जुगाड़।
गळी बां रो घर है
अर घर अेक सपनो!