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ग़म रसीदा बहार है दुनिया / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
जाने वाले कोई अनमोल निशानी दे जा
बीते लम्हों की कोई याद पुरानी दे जा
ताज़गी दिल में रहे तेरी मुलाक़ातों की
मेरे ठहरे हुए अश्क़ों को रवानी दे जा
मेरी आंखों की तपिश इस से हो शायद कुछ कम
इन सुलगती हुई आंखों को तू पानी दे जा
तू कि आकाश में उड़ता हुआ इक बादल है
रुक के इक लम्हा मिरे खेतों को पानी दे जा
राहे-उल्फ़त में बढ़ें पांव हमेशा मेरे
मेरे एहसास को इक ऐसी रवानी दे जा
जो मिरे अश्क़ों ने लिख लिख के मिटा दी आखिर
तू वही फिर से अधूरी सी कहानी दे जा
अहले-महफ़िल सदा अशआर सराहें मेरे
मेरे जज़्बात को तू जादू-बयानी दे जा
उस को ता-उम्र न भूलेगा ये तेरा 'अंजुम'
कोई पैग़ाम निगाहों की ज़बानी दे जा।