भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँव का गीत / कमलकांत सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह हमारे गांव की पहचान है,
हर अधर पर मोहिनी मुस्कान है।

जो पथिक आया यहाँ पर,
रह गया होकर यहीं का,
ढूँढ़ता था प्यार कण भर,
पा गया सागर सरीखा,
देवता-सा गंध में मेहमान है।

नीतियाँ जीवित यहाँ पर,
सत्य का सूरज उगा है
हर अँधेरा डूबता है,
यह यहाँ की मान्यता है,
त्याग का ही गांव को वरदान है।

गांव ने सम्पन्नता दी,
मन दिया, वैभव दिया है,
संस्कृति दी, सभ्यता दी,
धर्म औ दर्शन दिया है,
गांव जैसा गांव का परिधान है।

गांव गोरी, गीति गुंजन,
गांव माटी, प्रीति चंदन,
गांव पूजा, रीति श्रद्धा,
गांव माता, भक्ति वंदन,
गांव को तो पूजता भगवान है।
यह हमारे गांव की पहचान है।