गाँव से शहर तक / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
1.
नाचता गाता हुआ चौपाल
भीनी फैलती खुशबू
घर घर दे रही न्योता
कभी गरबा कभी झूले
कभी फाग के गाने
मोसम को सजाते हैं
मोसम को सजाते हैं
धूम मचाती जवानी।
दौड़ कर आते हुए बच्चे
लकडी का सहारा लिए बूढें
सारा गाँव जैसे बंधी मुठ्ठी
ख़ुशी की लहर बिखराती हुई
किसान की गाड़ी
फसल लेजाती हुई खलियान में
वह पीर सहलाता
हुआ अपना हाथ
खुशियों से लदा हर मौसम।
2.
शहर में बढती हुई छाया
एक सूनापन भारी हवा
सींमेंट की दीवार सी खड़ी
इमारतों के झुंड
आधी रात बीत चुकी है
एक औरत मर रही फुटपाथ पर
मदद की गुहार लोंट आती है
टकरा कर सीमेंट की
बहुमंजिली दीवार से
डर से कांपता सुनसान।
एक जुलूस निकला
कुर्सी की दुकानें लुट गईं।
दो बच्चे लडे
शहर में दंगा होगया।
होटलों के व्दार पर
सूखी हँसी नकली प्यार के
पोस्टर चिपके हुए हैं।
आतंकी ने रेल की पटरी उडादी
सैकड़ों सोते हुए मारे गए।
भय से कांपता हर लम्हा
दौडती सड़कें व्यस्त जीवन
प्यार के लिए फुर्सत नहीं।
इस शहर में कहा से ढूँढ कर
लाएं खुशी के चार दाने।
चम् चमाती रोशनी के पास
केवल अँधेरा है।