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गांवपणौ / निशान्त
Kavita Kosh से
आं दिनां
बिरखा रो जोर
च्यारूं कूंट हरी-भरी
इसै में
पीठ पाछै झोळी लटाकायां
बो अेक मजूर
पारकै खेत री डोळी सूं
काटै घास
सरड़-सरड़
दूजी कानी
खेत-धणी
काटै जुंवार क्यारी सूं
जरड़-जरड़
बिरखा सूं पै’ली
आ बात कठै ही
जद तो लू ही
बळ्योड़ा खेत हा
बां दिनां
दोनूं दुःखी
आं दिनां
दोनूं सुखी।