गायक! रहने दो इन को, ये कातर तार बिचारे रुद्ध स्वर के ही खिंचाव से टूट रहे हैं सारे! यदपि नहीं निज व्यथा-कथा रोते-रोते वे थकते- मीड़ न दो! आशा का कम्पन तार नहीं सह सकते! 1936