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गिनती के गीत सुना पाया / हरिवंशराय बच्चन

गिनती के गीत सुना पाया!

जब जग यौवन से लहराया,
दृग पर जल का पर्दा छाया,
फिर मैंने कंठ रुँधा पाया,
जग की सुषमा का क्षण बीता मैं कर मल-मलकर पछताया!
गिनती के गीत सुना पाया!

संघर्ष छिड़ा अब जीवन का,
कवि के मन का, पशु के तन का,
निर्द्वंद-मुक्त हो गाने का अब तक न कभी अवसर आया!
गिनती के गीत सुना पाया!

जब तन से फुरसत पाऊँगा,
नभ-मंड़ल पर मँड़राऊँगा,
नित नीरव गायन गाऊँगा,
यदि शेष रही मन की सत्ता मिटने पर मिट्टी की काया!
गिनती के गीत सुना पाया!