प्रीत हरीतिमा लिये
अनोखी
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ
नरम घास का बिछा
गलीचा,
स्नेह- भरित जूही की
कलियाँ,
बना गिलहरी सा
मन मेरा,
फुदक रहा हर डाल
पात पर,
अधिकार समझ मैं
फिरूँ निडर- सी,
बैठ शाख पर तोड़ूँ
फलियाँ,
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ,
क्या तुमने सहलाया
मुझको?
पीठ पे उभरी स्पर्श-
धारियाँ,
गझिन पूँछ लहराकर
भागूँ,
लचक गई हैं लाज से
डालियाँ,
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ
प्रेम तुम्हारा पाकर
प्रीतम,
चपल भईं मेरी स्वर-
ध्वनियाँ,
दिखने में मैं लगती
भोली,
तुम संग जागी मन की
रंग-रलियाँ,
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ,
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