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महाराज दशरथका देहत्याग
सुन्यौ जब फिरि सुमन्त पुर आयो |
कहिहै कहा, प्रानपतिकी गति, नृपति बिकल उठि धायो ||
पाँय परत मन्त्री अति ब्याकुल, नृप उठाय उर लायो |
दसरथ-दसा देखि न कह्यो कछु, हरि जो सँदेस पठायो ||
बूझि न सकत कुसल प्रीतमकी, हृदय यहै पछितायो |
साँचेहु सुत-बियोग सुनिबे कहँ धिग बिधि मोहि जिआयो ||
तुलसिदास प्रभु जानि निठुर हौं न्याय नाथ बिसरायो |
हा रघुपति कहि पर्यो अवनि, जनु जलतें मीन बिलगायो ||