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गीतावली अरण्यकाण्ड पद 1 से 5/पृष्ठ 5

(5).
रागकेदारा
राघव, भावति मोहि बिपिनकी बीथिन्ह धावनि |
अरुन-कञ्ज-बरन-चरन सोकहरन, अंकुस-कुलिस-
केतु-अंकित अवनि ||

सुन्दर स्यामल अंग, बसन पीत सुरङ्ग, कटि निषङ्ग
परिकर मेरवनि |

कनक-कुरङ्ग सङ्ग, साजे कर सर-चाप, राजिवनयन
इत उत चितवनि ||

सोहत सिर मुकुट जटा-पटल-निकर, सुमन-लता
सहित रची बनवनि |

तैसेई स्रम-सीकर रुचिर राजत मुख, तैसिए ललित
भ्रकुटिन्हकी नवनि ||

देखत खग-निकर, मृग रवनिन्हजुत थकित बिसारि
जहाँ-तहाँकी भँवनि |

हरि-दरसन-फल पायो है ग्यान बिमल, जाँचत भगति,
मुनि चाहत जवनि ||

जिन्हके मन मगन भए हैं रस सगुन, तिन्हके लेखे
अगुन-मुकुति कवनि |

श्रवन-सुख करनि, भवसरिता-तरनि, गावत तुलसिदास
कीरति पवनि ||