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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 5

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(24) रामराज्य

राग सोरठ

पालत राज यों राजा राम धरमधुरीन |
सावधान, सुजान, सब दिन रहत नय-लयलीन ||

स्वान-खग-जति-न्याउ देख्यो आपु बैठि प्रबीन |
नीचु हति महिदेव-बालक कियो मीचुबिहीन ||

भरत ज्यों अनुकूल जग निरुपाधि नेह नवीन |
सकल चाहत रामही, ज्यों जल अगाधहि मीन ||

गाइ राज-समाज जाँचत दास तुलसी दीन |
लेहु निज करि, देहु निज-पद-प्रेमपावन पीन ||