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जयमाल जानकी जलजकर लई है |
सुमन सुमङ्गल सगुनकी बनाइ मञ्जु,
मानहु मदनमाली आपु निरमई है ||
राज-रुख लखि गुर भूसुर सुआसिनिन्ह,
समय-समाजकी ठवनि भली ठई है |
चलीं गान करत, निसान बाजे गहगहे,
लहलहे लोयन सनेह सरसई है ||
हनि देव दुन्दुभी हरषि बरषत फूल,
सफल मनोरथ भौ, सुख-सुचितई है |
पुरजन-परिजन, रानी-राउ प्रमुदित,
मनसा अनूप राम-रुप-रङ्ग रई है ||
सतानन्द-सिष सुनि पाँय परि पहिराई,
माल सिय पिय-हिय, सोहत सो भई है |
मानसतें निकसि बिसाल सुतमालपर,
मानहुँ मरालपाँति बैठी बनि गई है ||
हितनिके लाहकी, उछाहकी, बिनोद-मोद,
सोभाकी अवधि नहि अब अधिकई है |
याते बिपरीत अनहितनकी जानि लीबी
गति, कहै प्रगट, खुनिस खासी खई है ||
निज निज बेदकी सप्रेम जोग-छेम-मई,
मुदित असीस बिप्र बिदुषनि दई है |
छबि तेहि कालकी कृपालु सीतादूलहकी
हुलसति हिये तुलसीके नित नई है ||