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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 4
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बिनय सुनायबी परि पाय |
कहौं कहा, कपीस! तुम्ह सुचि, सुमति, सुहृद सुभाय ||
स्वामि-सङ्कट-हेतु हौं जड़ जननि जनम्यो जाय |
समौ पाइ, कहाइ सेवक घट्यो तौ न सहाय ||
कहत सिथिल सनेह भो, जनु धीर घायल घाय |
भरत-गति लखि मातु सब रहि ज्यौं गुड़ी बिनु बाय ||
भेण्ट कहि कहिबो, कह्यो यों कठिन-मानस माय |
"लाल! लोने लषन-सहित सुललित लागत नाँय ||
देखि बन्धु-सनेह, अंब सुभाउ, लषन-कुठाय |
तपत तुलसी तरनि-त्रासुक एहि नये तिहुँ ताय ||