भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली लङ्काकाण्ड पद 16 से 20 तक/पृष्ठ 4

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(19)

 बैठी सगुन मनावति माता |
  कब ऐहैं मेरे बाल कुसल घर, कहहु, काग! फुरि बाता ||

  दूध-भातकी दोनी दैहौं, सोने चोञ्च मढ़ैहौं |
  जब सिय-सहित बिलोकि नयन भरि राम-लषन उर लैहौं ||

  अवधि समीप जानि जननी जिय अति आतुर अकुलानी |
  गनक बोलाइ, पाँय परि पूछति प्रेम मगन मृदु बानी ||

  तेहि अवसर कोउ भरत निकटतें समाचार लै आयो |
  प्रभु-आगमन सुनत तुलसी मनो मीन मरत जल पायो ||