भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत तुम्हारे / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
गीत तुम्हारे रख अधरों पर
गाया करता हूँ
इनको अरमानों से
तुम ही जीवन के जीवन हो
तुम मेरी साँसें, धड़कन हो
सिर्फ तुम्हें ही चाहा
कई जमानों से
गीत तुम्हारे रख अधरों पर
गाया करता हूँ
इनको अरमानों से
मैं दीपक हूँ, तुम्हीं उजाला
तुमने गूँथी प्रेमिल माला
हवा बनी तुम ही
आती मैदानों से
गीत तुम्हारे रख अधरों पर
गाया करता हूँ
इनको अरमानों से
तुमसे ही मेरा होना है
तुम सँग जगना औ सोना है
चलना मुझको तुमसे
मिले विधानों से
गीत तुम्हारे रख अधरों पर
गाया करता हूँ
इनको अरमानों से
तुमसे ही अस्तित्व सुहाना
बस तुम तक है आना-जाना
दुख गायब है तुमसे
मिले निदानों से
गीत तुम्हारे रख अधरों पर
गाया करता हूँ
इनको अरमानों से