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गीत न गाते क्या करते / राम लखारा ‘विपुल‘
Kavita Kosh से
पलकों के तट बंध तोड़ जब दरिया बहने वाला था।
ऐसी हालत में बतलाओं गीत न गाते, क्या करते?
सपनों की ईंटें चुन चुन कर
नींदों के मजदूर थके।
आंसू भीतर बहे कि सारी
दीवारों का जोड़ पके।
प्राणों की कीमत पर अपना घर जब ढहने वाला था।
ऐसी हालत में बतलाओं गीत न गाते, क्या करते?
ओ ! चाहत के शीर्ष तुम्हारी
राह तकी सौ योजन तक।
पीर सही खुश होकर मन ने
सम्मोहन से मोचन तक।
शंका की उस अग्निशिखा में मन जब दहने वाला था।
ऐसी हालत में बतलाओं गीत न गाते, क्या करते?
उत्तर की अभिलाषाओं में
सारे प्रश्न उपासे हैं।
दिन की आंखें हुई उनींदी
रात के नैन रूआंसे हैं।
तुमने चेहरा फेर लिया जब मैं कुछ कहने वाला था।
ऐसी हालत में बतलाओं गीत न गाते, क्या करते?