जबेॅ चक्का डूबै पेॅ रहै
लागलै बिहान होतै
सब दिना ऐन्हऽ
पर वू रात ऐन्हऽ ऐलै
कि गुजरिये नै रहलऽ छै
गुजरथैं नै छै गुजरात
केरऽ गुज-गुज रात
अन्धकार केरऽ दायरा बढ़लऽ जाय छै
धरम केरऽ दायरा बढ़लऽ जाय छै
धरम केरऽ विकलांगता उजागर करतें
राजा केॅ पड़ै छै मुखौटऽ के जरूरत
गुज-गुज अन्हरिया में
बार-बार मुखौटा बदलै के चेष्टा
जनता केरऽ आँख चौड़ऽ होलऽ जाय छै
अन्हारौ में साफ झलकै छै-मुखौटा
ओकरऽ पीछू एगो आरो मुखौटा
ओकरऽ पीछू एगो आरू...।
क्रोध केरऽ सीमा पार होय जाय छै
मुखौटा मनऽ के
एक केॅ आपनऽ मुखौटा याद आबै छै
गोधरा केरऽ धरा पर
गाय ऐन्हऽ जनानी आरो बूतरू सिनी केॅ
जिन्दा जलाबै घड़ी पहननेॅ रहै वें
दोसरौ केॅ आपनऽ मुखौटा याद छै
जबेॅ ‘आनंद’ में कत्तेॅ केॅ जिंदा
आगिन में भेंकनेॅ रहै वें
सभ्भैं आपनऽ मुखौटा खौफनाक बनैलेॅ छै
एक सें बढ़ी केॅ एक
सभ्भे एक दोसरा पर हावी होय लेॅ चाहै छै
आपनऽ -आपनऽ मुखौटा केॅ जिंदा राखै लेली
देश केॅ आगिन में झोंकने जाय रहलऽ छै
गाँधी केरऽ अहिंसा
अपमानित होय छै आपने धरती पर
मुखौटा केरऽ संस्कृति में
साँस लेतें-लेतें हमरऽ हृदय
वैमनस्यता केरऽ ढेर में बदली गेलऽ छै
मुखौटा पेॅ मुखौटा
लगाबै के चेष्टा तभियो जोरऽ सें जारी छै
धरम केरऽ मुखौटा
अहम आरो वहम के मुखौटा
जबेॅ-जबेॅ सवार होय छै जूनून
मुखौटा के पीछू नुकैलऽ मगजऽ पर
देश केरऽ सीना
छलनी-छलनी होय जाय छै
मानवता हाशिया पर चल्लऽ गेलऽ छै
मुखौटा मुख्य धारा में फैशन में छै
एक मुखौटा मंदिर-मंदिर चिकरै छै
दोसरऽ मंदिर में घुसी केॅ
लाशऽ के पथार लगाबै छै
देश नाम के मंदिर के अबेॅ कहाँ ठिकाना छै
भारत माता के मूरत कहाँ छिपलऽ छै
हिमालय में बसलऽ देश केरऽ इज्जत देश केरऽ ज्ञान
पिघली-पिघली बही रहलऽ छै गंगा में
मुखौटा केरऽ संस्कृति के
यहेॅ हश्र होय छै।