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गुनगुनी धूप-सी / साँवर दइया
Kavita Kosh से
पाला खाए पीले पात लिए
जमे हुए खड़े हैं
कोहरा ओढ़े पेड़
ठिठुरता पड़ा कहीं अकेला मैं
हो उठा ताज़ा-दम
मन-छ्त पर छितराई जैसे ही
गुनगुनी धूप-सी स्मृति तुम्हारी !