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गुम हूँ मैं / निश्तर ख़ानक़ाही

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हर गाम* पे यह सोच के, मैं हूं कि नहीं हूं
क्या कहर है खुद अपनी ही परछाई को देखूँ
 
इस अहद में सानी मेरा मुश्किल से मिलेगा
मैं अपने ही जख्मों का लहू पी के पला हूँ
 
ऐ! चर्ख़े-चहरूम के मकी*! देख कि मैं भी
तेरी ही तरह सच की सलीबों पे टंगा हूं
 
मोहलिक* है तेरा दर्द भी क़ातिल है अना* भी
हैरान हूं इल्ज़ाम अगर दूँ तो किसे दूँ
 
कल तक तो फ़क़त तरे तकल्लुम* पे फिदा था
अब अपनी ही आवाज की पहचान में गुम हूँ

गाम-हर कदम

चर्ख़े-चहरूम के

मकी-ईसा मसीह

मोहलिक- घातक

अना-स्वाभिमान

तकल्लुम-वार्तालाप