Last modified on 21 अक्टूबर 2016, at 04:38

गुरु हो हम तो निपट अनाड़ी / किंकर जी

॥प्रार्थना॥

गुरु हो हम तो निपट अनाड़ी, भवनिधि कैसें तरबै हो॥टेक॥
जन्म-जन्म से भक्ति न कैलौं, पड़लौं माया के फंद में।
साधु-संत के संग न सोहाएल, कैसें तरबै भव से॥गुरु हो.॥
मातु-पिता-सेवा नहिं कैलहुँ, कहियो न साधु जमैलौं।
द्विज देवन के निन्दा कैलहुँ, वेद शास्त्र नहिं पढ़लौं॥गुरु हो.॥
श्रवण सदा परनिन्दा सुनलक, जिह्वा न गुरु गुण गैलक।
रसना सबसे लड़ल झगड़लक, नयना गुरु नहिं देखलक॥गुरु हो.॥
हस्त कबहुँ नहिं परहित कैलक, स्वाँस नहिं गुरु जपलक।
पैर कबहुँ नहिं नेकी कैलक, मन नहिं ध्यान कमौलक॥गुरु हो.॥
‘किंकर’ ई सब सोच-विचारि के, कुनो न आशा देखलक।
सबहि आश निराशा भऽके, तोहर चरण पकड़लक॥गुरु हो.॥