भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुल्ली बोली / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
गुल्ली बोली इस तितली को,
हलुआ पुड़ी खिलाऊंगी।
कभी लंच पर कभी डिनर पर,
इसको रोज़ बुलाऊंगी।
सुनी बात तो तितली बोली,
हलुआ पुड़ी न खाऊंगी।
अगर खिलाओ पिज्जा वर्गर,
तभी लंच पा आऊंगी।
डिनर रात को होता इससे,
रात नहीं आ पाऊंगी।
ब्रेक फास्ट में, अगर खिलाओ,
चाऊमिन तो आऊंगी।