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गुस्से भरा समय / अरविन्द श्रीवास्तव

किसी खचाखच भरी यात्री गाड़ी में
इंच भर टसकने के लिए
बगल वाले से मिन्नतें और हाथ में
मछलियों भरा एक्वेरियम

चप्पे-चप्पे पर शिनाख़्त करती आँखें
लड़खड़ाते पैर
अंतड़ियों की कुलबुलाहट
उलाहनों से लपलपाती जीभ
हर कोई अपने में अनुपस्थित
हाथ सूत्र की तलाश में
हर जगह, जगह के लिए उठा-पटक
स्त्री-स्पर्श की ललक

घर में किरासिन नहीं
गैस के लिए गुहार
कार्बन से भरा पेट
सुबह कश्मीर पर अमरीकी मध्यस्थता का भय
दोपहर पड़ोसी से कच-कच
रात ड्रेगन की चिंता
सब कुछ इसी सफ़र में
जीवाश्म मन पर
उम्मीदों का लोथा
एजेण्डे में सभी कुछ
लीडरों की लफ़्फ़ेबाजी
दिन राई, रात राई
पहाड़ कहीं नहीं

शेष समय
सेटेलाइट चैनलों की चिल्ल-पों
सुन्दरियों की मस्त-मस्त मुस्कान
आकर्षक-लुभावनी बड़ी-बड़ी दुकान

गुस्से भरा समय
क्रोध से फटती सर की नस
नब्ज टटोली ब्लड-प्रेशर-लो
हाय ! हाय !
ये हालात कितने नपुंसक हैं
छी !