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गेहूँ-गुलाब / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
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मुँह-उपरें विहसै गुलाब
हुन्नें गेहूँ असनैलऽ छै।
घरे-घरे सुण्डा घूरै
आटा लागै अनसैलऽ छै।
दाम करै छै सनमन पिल्लू
मक्खी भन्नभनैलऽ छै
जेकरा अंगे काँटे-काँटऽ
वहेॅ गुलाब कहैलऽ छै।
गेहूँ धूरा में लोटै छै
गमला गुलाब सजैलऽ छै
माटी के रस चूसी-चूसी
सब दिन गुलाब मुसकैलऽ छै।
पेट भरै गेहूँ के बाली
सबके देहें समैलऽ छै
तब्बो कैन्हें सबके नजरें
गुलाबे केश मढ़ैलऽ छै?