भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोंदा फुलगे मोरे राजा / हरि ठाकुर
Kavita Kosh से
हो गोंदा फुलगे मोरे राजा
गोंदा फुलगे मोर बैरी
छाती मं लागय बान
ठाढ़े हे बैरी टरत नई ये
मोर आंखी के पिसना मरत नईये
गोंदा फुलगे मोरे राजा
गोंदा फुल गे मोर बैरी
छाती मं लागय बान
पूनम के चंदा लजा के मर जाए
तोर रूप आज रतिहा गजब गदराए
गोंदा फुल गे मोरे राजा
गोंदा फुल गे मोर बैरी
छाती मं लागय बान
सुआ नही बोले ना बोले मैना
मैं तरसत हव सुनेबर तोरेच बैना
गोंदा फुल गे मोरे राजा
गोंदा फुल गे मोर बैरी
छाती मं लागय बान