भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोरधन / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काल का हुआ इशारा
लोग हो गए गोरधन

हद कोई जब माने नहीं अहम
आंख तरेरे बरसे बिना फहम
तब बांसुरी बजे
बंध जाय हथेली
ले पहाड़ का छाता
जय-जय गोरधन!

हठ का ईशर जब चाहे पूजा
एक देवता और नहीं दूजा
तब सौ हाथ उठे
सड़कों पर रख दे
मंदिर का सिंहासन
जय-जय गोरधन!

सेवक राजा रोज रंगे चोले
भाव-ताव कर राज धरम तोले
तब सौ हाथ उठे
उठ थरपे गणपत
गणपत बोले गोरधन
जय-जय गोरधन!