गोरी गरबीली उठी ऊँघत चकात गात ,
देव कवि नीलपट लपटी कपट सी ।
भानु की किरन उदैसान कँदरा ते कढ़ी,
शोभा छवि कीन्ही तम तोम पै दपट सी ।
सोने की शलाका श्याम पेटी ते लपेटी कढ़ि,
पन्ना ते निकारी पुखराज के झपट सी ।
नील घन तड़ित सुभाय धूम धुँधरित ,
धायकर धँसी दावा पावक लपट सी ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।