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गोरे-गोरे गाल पर / अनुराधा पाण्डेय
Kavita Kosh से
गोरे-गोरे गाल पर, कोटि टका तिल कार।
छिटके फूलों-सी हँसी, हृदय उठे झनकार।
हृदय उठे झनकार, बाँह पकडूं तो कैसे।
नैनों से फुफकार, करे नागिन के जैसे।
उसने कितने दाँत, सुनो! मजनूँ के तोड़े।
नहीं चाहिए यार! गाल भी इतने गोरे।