गौतम गांधी की धरती वालों / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
गौतम गाँधी की धरती वालों तुमसे युग का यक्ष प्रश्न हैं
कोटि-कोटि श्वांसो के स्वामी मेरा तुमसे यह सवाल है।
आजादी की इतिश्री मानी तुमने
जब गड़़ा तिरंगा राजभवन में
मतदानों के व्यूह चक्र से
पद पाकर वैभव सर्जन में
किंचित सुविधा के कारण तुमने
सिद्धांतों की है खेली होली
क्या इन्हीं दिनों के लिए जवाब दो
गाँधी ने थी झेली गोली
ओ कर्णधार ओ प्रमाद ग्रस्त जन डूब रहा जग लूट रहा
शत सहस्त्र जो प्राण मिटे क्या उसका कुछ भी ख्याल है।
गौतम गाँधी की धरती वालों तुमसे युग का यक्ष प्रश्न है
ओ सुख आराधक कांचन सेवी
व्यस्त पुरूष जन गण अधिवासी
तेरे संचित मणि मुक्ता से
वैश्वानर जलता रोटी प्यासी
यह तेरा पुरूषार्थ कि भारत
अभाव ग्रस्त है भूखा नंगा
यह तेरा आदर्श कि तट है-
भीगा सूखी है गंगा
भारत करवट बदल रहा श्रम का स्यंदन निकल चला है
उभरी हुड्डी वाले दधीचि लो उठा रहे जलता मशाल है
गौतम गाँधी की धरती वालों तुमसे युग का यक्ष प्रश्न है।
क्या देख सके वीराने उन गाँवों को
जो आजादी में सूख चले हैं
लाख-लाख झोपड़ियों के कान्हा
बुझे दीप जो भूख पले हैं
निर्वाचित सूबेदारों के सीमा बंधन
बोली क्या हो यह विवाद है
दुर्बलता में वैभव विलास
और जनसत्ता पर बारूदी विषाद है
प्रजातंत्र के भग्न सिपाही बोलो क्या तुम आहुति दोगे
सही स्वराज्य के रक्षण का उठ रहा आज यह यज्ञ ज्वाल है
गौतम गाँधाी की धरती वालों तुम से युग का यक्ष प्रश्न है।
उठो अर्चना पूरी कर लो
श्रद्धा के आराधों का
परिभाषा में उलझो मत
यह समय नहीं है वादों का
बलिदानी ऋण से मोक्ष पर्व का
स्ंचित पावन मेला आज
गाँव-गाँव के स्वप्न संजोने
आज अकेला रच लो साज
व्यर्थ तेरी सज्जा साधन है झूठा है श्रृंगार मार्ग का
रक्त उतर आये हाथों में जन जीवन में गहरा उबाल है
गौतम गाँधी की धरती वालों तुमसे युग का यक्ष प्रश्न है।
बंद तिजोड़ी तुम जोड़ रहे
इसलिये कि श्मशानों में अलख जगाओ
सर्वनाश का दरबार लगे तो
महाप्रलय का स्वर दुहराओ
आज नहीं तो कभी नहीं फिर
खूब समझ लो मेरे साथी
विस्मय छोड़ो आगे आओ
प्रेमधार दो बुझती बाती
स्वाभिमान शंख है ध्वनित देश में माता तुमसे मांग रही
व्यर्थ अहं का करो विसर्जन पुनः उठा दो राष्ट्र भाल है
गौतम गाँधी की धरती वालों तुमसे युग का यक्ष प्रश्न है।
कोटि-कोटि श्वासों के स्वामी मेरा तुमसे यह सवाल है।