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घनश्याम साँवरे को निभाना भी चाहिये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
घनश्याम साँवरे को निभाना भी चाहिए ।
जीने का हमें कोई बहाना भी चाहिए।।
यूँ तो बड़ी बेचैन हैं रातें गुजर रहीं
अब ख्वाब कोई आँख में आना भी चाहिए।।
नजरों को है गुरूर कि तीखी निगाह है
पर बींधने को कोई निशाना भी चाहिए।।
यूँ तो किसी की याद ही जीने का सबब है
खामोश लब को कोई तराना भी चाहिए।।
रहता है मेरे दिल में हमेशा तू ही मगर
बेवक्त कभी तुझको भुलाना भी चाहिए।।
ख्वाबों में निगाहों में धड़कनों में वही है
उल्फत से कभी उसको बुलाना भी चाहिए।।
आ भी जा कभी मेरे तसव्वुर में कन्हैया
रहने को तुझे कोई ठिकाना भी चाहिये।।