भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर-दोय / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
घर छोड’र
चिडक़ली चाल पड़ी
आपरै नूंवैं घर बार
बण आपरै जलम रौ
घर ई नीं छांड्यौ
मां-बापूजी
बैन-भाई
सखि-सहेल्यां
अर आपरी
सगळी यादां नै समेट’र
चाल पड़ी
बा’
अेक नूंवैं घर री
काया में प्रवेश सारू।